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लालची नौकर की कहानी
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लालची नौकर की कहानी | Lalchi Nokar Kids Story | Kids Story In Hindi |
एक गांव में शांताराम और शांताबाई नाम के दो लोग रहते थे उसको एक बेटा था पर नौकरी शहर में होने के कारण वह अपने मां-बाप के पास नहीं रह सकता था 1 दिन बेटा रमेश बोला मां पिताजी तुम भी मेरे साथ शहर चलो ना हम वही साथ रहेंगे इस पर शांताराम जी बोले नहीं बेटा हम तुम्हारे साथ वहां पर नहीं रहेंगे मुझे खूबसूरत गांव छोड़कर कहीं नहीं जाना यही हमारे सब रिश्तेदार हैं और यही हम रहेंगे जिस पर रमेश बोला पर आप मेरे साथ चलते तो अच्छा होता बेटा हमारी फिक्र मत करो हम बड़े आराम से रह लेंगे और हमारे साथ हमारा नौकर रामू हैं जो हमारी देखभाल करेगा तो आप सिर्फ अपनी नौकरी के बारे में सोचो हमारा आशीर्वाद तुम्हारे साथ सदैव रहेगा यह सुनते ही रमेश अपने मां बाप का आशीर्वाद लेकर शहर की ओर चला गया आप घर में शांताराम हो और शांताबाई अकेले रहते थे और साथ में उनका नौकर रामू घर का सारा काम करता था जैसे साफ-सफाई पानी भरता खाना पकाना इत्यादि रामू कई वर्षों से उनके पास काम कर रहा था और यही कारण है कि शांताराम और शांताबाई उस पर पूरा विश्वास करते थे रामू दोनों की बड़ी सेवा करता था और फिर अपने घर चला जाता था।
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घर जाने के बाद रामू की पत्नी कहती है आजकल काफ़ी काम करना पड़ रहा है अभी तो उनका बेटा नौकरी के लिए शहर चला गया अब दोनों बेचारे अकेले हैं इस पर रामू की पत्नी बिछड़ते बोली अकेले मतलब बिल्कुल रामू बोला जी हां सच में अकेले रामू की पत्नी आगे बोली अगर वह अकेले हैं तो कुछ अच्छे-अच्छे पकवान बनवाकर लाओ उन्हें क्या पता चलेगा बहुत दिन हो गए अच्छा खाना खाए इस पर रामू बोला ठीक है भगवान कल जरूर लाता हूं अगले दिन रामू काम पर गया घर का सारा काम किया और अंत में अपनी पत्नी के लिए चोरी चुपके अच्छे व्यंजन बनाए और घर ले आया। रामू की पत्नी की लालच काफ़ी बढ़ती गई।
रामू की पत्नी करती है कि तुम घर के बर्तन वगैरह सामान जो भी है तुम धीरे-धीरे करके लाते जाओ तब राम भी अपनी पत्नी की बात सुनकर धीरे-धीरे पहले दिन तो लोटन ठाकर लड़ता है दूसरे दिन चम्मच तीसरे दिन कोई और बर्तन इसी प्रकार से वह दिन प्रतिदिन घर के सारे बर्तन उठाते लाता है और अपने घर पर लाकर रख देता है और यह सिलसिला कुछ दिनों से यूं ही चलता रहा शांताराम रोज के काम से घर वापस आए और अपना लोटा ढूंढने लगे उसने रामू से पूछा कि लोटा कहा है रामू ने जवाब दिया बहुत ढूंढा कि नहीं मिला अगले दिन शांताबाई को चम्मच नहीं मिली शांताबाई ने सोचा जरूर कुछ गड़बड़ है यह सारी चीजें अपने आप कहां जा सकती हैं शांताबाई शांताराम से कहती हैं अजी सुनते हो हमारी घर की एक एक करके सभी चीज गायब हो रही है जरूर कुछ गड़बड़ है इस पर शांताराम बोले मेरा लोटा भी कितने दिनों से नहीं मिला हा जरूर गड़बड़ है अगले दिन शांताराम बाहर जाकर कुछ बिच्छू को एक डब्बे में पकड़ कर ले आया और उस डिब्बे को रामू को रखने के लिए दे दिया कि रामू को बोला कि इस डिब्बी में सोने चांदी है जिसे मुझे कल बैंक में जमा करा कर आना है लेकिन आज तो इसे घर पर ही रखना होगा संभाल के रामू तुम इस डिब्बे को ले जाकर मेरे पलंग के सहारे वाली टेबल पर रख दो रामू उसे ले जाकर उसे पलंग के सहारे वाले टेबल पर रख देता है।
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और फिर रामू अपना रोज का काम करने लगा लेकिन काम करते समय ध्यान सिर्फ उसे उस डब्बे का ध्यान आ रहा था जब वे दोनों दोपहर का खाना खाने के बाद शांताराम और शांताबाई सोने के लिए चले गए। तब रामू चुपके से उस डिब्बे को खोलने का प्रयास करता है और उस डिब्बे को खोलने पर बिच्छू निकल जाते हैं बिच्छू रामू को खाने के लिए उसके पीछे पीछे दौड़ में लग जाते हैं तब रामू चलाने लग जाता है बचाओ बचाओ रामू की चिल्लाहट की आवाज सुनकर शांताबाई और शांताराम दोनों जाकर रामू की तरफ बाहर आ जाते हैं।
शांताराम बोला मुझे पूरा यकीन था कि तुम चोरी कर रहे थे मैं तो सिर्फ तुम्हें सबक सिखाना चाहता था तुम्हें क्या लगा कि हम बूढ़े हो गए हैं तो हमें कुछ पता नहीं चलेगा मैं तो पहले से ही समझ गया था कि तुम खाना लेकर जाते थे हमने सोचा था ना ही तो है क्या फर्क पड़ता है लेकिन दिन-ब-दिन तुम्हारा लालच बढ़ता गया और तुम घर की वस्तुएं चुराने लगे शर्म आनी चाहिए तुम्हें जिस थाली में खाते हो उसी में छेद करते हो रामू को अपनी गलती का एहसास हुआ और वह रोने लगा।
शिक्षा
इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती हैं कि हमें लालच नहीं करना चाहिए लालच करना बुरी बला है लालच का रास्ता हमेशा बुराई की ओर जाता है।
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